Wednesday, June 9, 2010

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'आपको किस से प्रेम है-कथा से,शास्त्रों से या पुष्पमालाएँ से?'एक बार प्रेमपूर्ण यौवना ने मुझे पूछा।
मैं हँसा,'मुझे कथा,शास्त्रों या पुष्पमालाएँ से प्रेम नहीं है।सहज गीत,सहज संगीत,सहज नृत्य,सहज प्रवृत्ति,सहज निवृत्ति-संक्षेप मे कहूँ तो मुझे सहजता से प्रेम है।'
मेरा जवाब सुनकर वह रहस्यपूर्ण हँसी, मैं भी उसकी तरह ही हँसने लगा।
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नई दुनिया में एक ही धर्म,एक ही मानव जात,एक ही जगत और एक ही इश्वर रहस्यमयता का निर्माण कर रहे थे।
किसी के भाग्य में पत्थर नहीं थे,फूल ही फूल थे।नई दुनिया के नए मानव वे फूलों से उनके कपड़े सज़ाते थे;स्त्रीयाँ शृंगार करती थीं।हवा खुद की लहरों से जड़ और चेतन के प्रति नृत्यमय बहती थी।
तब सभी मानव तृप्त थे-मानवता से,धार्मिकता से।सहजता से सभी जीते थे।किसी को किसी भी प्रकार की महत्वकांक्षा न थी।सभी जीते और जीने देते।सब में आनंद था इसलिए सब ओर सहजता का सूरीला संगीत बज रहा था।
इस दुनिया में कोई उपमा न थी इसलिए भाषा अति सरलता से भाव विनिमय का कार्य करती थी।शब्द का ज्यादा महत्व नहीं था इसलिए मौन का शासन था।इस शासन में बिलकुल अराजकता थी, किन्तु व्यवस्था शिरमोर थी।सत्ताधीश,पंडित,पुरोहित का इस दुनिया में कुछ भी काम न था।सभी खुद के शासक थे और शासित भी थे।
वाह,नई दुनिया मैं तुझे सदा प्रणाम करता हूँ।
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सूर्य का एक किरन मेरे पास आकर बोला,'चल, तुझे मैं प्रकाश के पास ले चलूँ!'
'प्रकाश और अंधकार की दुनिया में क्या भेद है?'मैंने उससे पूछा।
मेरा सवाल उसको पसंद नहीं आया इसलिए वह चला गया।
अब मेरे लिए एक ही दुनिया है।न जड़ का कोई भेद है, न चेतन का।सब एकरूप है।इस अद्वैत ही नई दुनिया का चालक और विनाशक बल है।इसलिए जन्म और मौत के बीच कोई अंतर नहीं है।
मेरी नई दुनिया में सभी लोगो वर्गहीन होंगे;प्रेमपूर्ण होंगे;स्व में शासित होंगे;किसी के पास कोई भी विचार उधार न होंगे।
मेरी इस विचारधारा को एक अन्य किरन ने आत्मसात् की और वह उस नासमझ किरन के पास जाने लगा...
अब तक वह मेरे पास नहीं लौटा।इसलिए लगता है कि दोनों की दिशा एक हो गई होगी।अब उनकी क्या प्रतीक्षा?

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